Saturday, February 21, 2009

ਕਿੰਨੀ ਹੀ ਵਾਰ....











4 comments:

सुभाष नीरव said...

यह जुगलबन्दी सुन्दर और आकर्षक है। पर मेरे जैसे पाठक के लिए कवितांओं को पढ़ पाना बड़ा कठिन हो जाता है। चित्र के ऊपर आप कविताएं जिस कलर में देते हैं, वह कलर पृष्ठभूमि के कलर के कारण दब जाता है और अक्षर पढ़ने में बहुत दिक्कत होती है। कविताओं का फोन्ट साइज भी कम होना एक कारण हो सकता है। थोड़ा इस तरफ ध्यान दें कि कविताएं आसानी से पढ़ी जा सकें।
शुभकामनाओं सहित

सुभाष नीरव

ਤਨਦੀਪ 'ਤਮੰਨਾ' said...

ਸ਼ੁਕਰੀਆ ਨੀਰਵ ਸਾਹਿਬ! ਦਰਪੇਸ਼ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਨੂੰ ਮੱਦੇ-ਨਜ਼ਰ ਰੱਖਦਿਆਂ, ਫੋਟੋਆਂ ਨੂੰ ਦੋਬਾਰਾ ਅਰੇਂਜ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ। ਫੌਂਟ ਇਸ ਤੋਂ ਵੱਡੇ ਕਰਨ ਨਾਲ਼ ਅੱਖਰ ਫੋਟੋ ਦੇ ਦਾਇਰੇ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਚਲੇ ਜਾਂਦੇ ਨੇ। ਭਵਿੱਖ 'ਚ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਧਿਆਨ ਰੱਖਿਆ ਜਾਵੇਗਾ ਕਿ ਨਜ਼ਮਾਂ ਸਾਫ਼ ਪੜ੍ਹ ਹੋਣ।
ਅਦਬ ਸਹਿਤ
ਤਮੰਨਾ

सुभाष नीरव said...

तमन्ना जी, अब बात बनी। बहुत खूबसूरत। नज्में अब तो बहुत आसानी से पढ़ी जाती हैं। आपने मेरी दिक्कत आसान कर दी। शायद अन्य पाठकों की अब यह रूप रूचिकर लगेगा। मेरी प्रार्थना को आपने इतनी जल्दी स्वीकार कर लिया, इस बात की भी खुशी है। भविष्य में भी आप इस बात का ध्यान रखेंगी, इसका मुझे विश्वास है। शुक्रिया !

ਤਨਦੀਪ 'ਤਮੰਨਾ' said...

ਤੁਹਾਡਾ ਹੁਕਮ ਹਮੇਸ਼ਾ ਸਿਰ-ਮੱਥੇ ਨੀਰਵ ਸਾਹਿਬ!
ਤਮੰਨਾ